11 फ़रवरी, 2011

"गरीब घर से निकला हूँ"

दोस्तोँ , मेँ एक किसान परिवार से निकला हूँ। मेरे माँ-बाप दोनो अनपढ हैँ।यँहा तक कि मेरे परिवार मेँ मैँ 10वीँ पास करने वाला प्रथम व्यक्ति हूँ। लेकिन मेने कभी इन बातोँ पर ध्यान नही दिया। मैने हमेशा ही कुछ नया करने की सोची।मुझे उस वक्त बङा दुख होता हैँ कि जब मेरा कोई दोस्त या कोई अन्य व्यक्ति किसी गरिब के स्वपन को यह कह कर नकार देते हैँ कि आप सफलता प्राप्त नही कर सकते या आप यह नोकरी प्राप्त नही कर सकतेँ। इस वक्त मेरा मन खुद से सवाल करता हैँ कि "क्या सफल होने के लिए धनवान होना जरुरी हैँ।" अगर पैसा ही सफलता का पैमाना हैँ तो भगवान ने इस 'नाचीज' गरीब को बनाया ही क्योँ। लेकिन मेरे दोस्त मैँ इस धारणा का तोङ निकालने का प्रयास कर रहा हूँ. और आशा करता हुँ कि तोङ पाऊँगा। मुझे सरकारी सेवा भले ही ना मिले लेकिन मैँ अपनी सेवा मेरे देश व समाज को तो दे सकता हुँ।
जय हिन्द॰॰॰॰॰
रामस्वरुप बिश्नोई "रामू"

03 फ़रवरी, 2011

शहीद की शर्मिन्दगी

गाँव भीँयासर के अमर सपूत गणपतराम पूनियाँ जम्मू मेँ देश के दुश्मनौ से लोहा लेते हुए 2010 मेँ शहीद हुए थे। शहीद का अन्तिम सँस्कार राजकिय सम्मान के साथ किया गया,इस अवसर पर समाज के गणमान्य लौग तथा पूरा गाँव उपस्थित था।उस वक्त गाँव के सरपँच जी ने कहा था कि शहीद की शहादत को अमर बनाने के लिये अँतिम सँस्कार स्थल पर एक भव्य प्रतिमा का निर्माण करवाया जायेगा।इस घटना को आज 7 महीने हो गये हैँ।लेकिन सरपँच साहब का यह वादा हकिकत रुप कब लेता है, कुछ भी कह पाना मुश्किल हैँ। उस शहीद को आज भी प्रतिमा का इँतजार हैँ।अगर यह प्रतिमा बन जाती है तो इसका एक फायदा मेरे गाँव को यह होगा कि यह एकदम माध्यमिक विध्यालय के सामने होगी जिससे इस विध्यालय के छात्र उस शहीद जैसा स्वपन अपने दिल मेँ बसा सकेँगेँ।
जय हिन्द ॰॰॰॰॰रामस्वरूप पूनियाँ